Wednesday, December 19, 2012

इस तरह से रोकते है वो लोग अब रस्ते हमारे |


इस तरह से रोकते है वो लोग अब रस्ते हमारे |
सोने से पहले ही जगाते है , कही रातो में रातो में कोई खवाब ||

अब इन आँखों में नीद का आना एक ख्व्वाब सा हो गया है |
जब से वो शक्श हमसे जुदा सा हो गया है ||

शायद खबर नहीं होगी, उन लोगो को अभी |
जो हमें जगाने के लिये, रातों की नीदे ख़राब करते है अपनी ||

हमें तो आदत है, यूँ रातो में जगाने की |
उनकी सेहत देख लगता नहीं, क़ी वो भी वाकिफ होंगे इस हुनर से ||

अब जा कर कोई कह दे उनसे ,
की इन तूफानों का रास्ता न रोंके ||
एक पल में याद दिला सकते है तुम्हारी औकात |
मगर आज भी हम मानवता की हद नहीं पार करते ||