Wednesday, December 19, 2012

इस तरह से रोकते है वो लोग अब रस्ते हमारे |


इस तरह से रोकते है वो लोग अब रस्ते हमारे |
सोने से पहले ही जगाते है , कही रातो में रातो में कोई खवाब ||

अब इन आँखों में नीद का आना एक ख्व्वाब सा हो गया है |
जब से वो शक्श हमसे जुदा सा हो गया है ||

शायद खबर नहीं होगी, उन लोगो को अभी |
जो हमें जगाने के लिये, रातों की नीदे ख़राब करते है अपनी ||

हमें तो आदत है, यूँ रातो में जगाने की |
उनकी सेहत देख लगता नहीं, क़ी वो भी वाकिफ होंगे इस हुनर से ||

अब जा कर कोई कह दे उनसे ,
की इन तूफानों का रास्ता न रोंके ||
एक पल में याद दिला सकते है तुम्हारी औकात |
मगर आज भी हम मानवता की हद नहीं पार करते ||

Saturday, December 15, 2012

मैं वो पत्थर हूँ, जिसे हर किसी ने ठुकराया हैं |




मैं वो पत्थर हूँ, जिसे हर किसी ने ठुकराया हैं |

हमारे इस भोलेपन का हर किसी ने फायदा उठाया हैं ||

तरह-तरह से रोकते है वो लोग अब रस्ते हमारे |

झोली फैलाये फिरते थे, जो कभी सामने हमारे ||


By: Lalit Bisit

Wednesday, December 12, 2012

करवातो में कटती रात, सिलवटो में बदल गयी |


करवटो में कटती रात, सिलवटो में बदल गयी |

करवटो में कटती रात, सिलवटो में बदल गयी |

इतने खुश थे, कि यूँ ही रात गुजर गयी ||

 इस कदर किया आज, किसी की  नजरो ने घायल |

बेजान ज़िन्दगी में जैसे हजारो रंग भर गयी ||


Saturday, October 20, 2012

उन छोटे बच्चो की भी क्या किस्मत होती है |

उन छोटे बच्चो की भी क्या किस्मत होती है |
जो एक बड़ा सा थैला उठा कर,
कभी सड़को से कूड़ा उठाते हैं ,
कभी स्टेशन से कूड़ा उठाते हैं ,
फिर....... जब घर जाते है तो,
एक रोटी भी चैन की नहीं खा पाते है ||

Friday, October 5, 2012

रोज मिलने की तमन्ना कही बढ न जाये |





रोज मिलने की तमन्ना कही बढ न जाये |

तेरी मोहब्बत का नशा मुझ पर कही चढ़ न जाये ||
 

इस उम्र में ये शौक अच्छा नहीं है ' ललित !'कही ये 

दुनियां तुझे भी दीवाना न कहने लग जाये ||
                                                                

तेरी आँखों का काजल, तेरे गालो तक आ गया |

तेरी आँखों का काजल, तेरे गालो तक आ गया |

तेरे इस हाल पर, मेरा दिल भी घबरा गया ||

मैंने तो यूँ ही थम लिया था हाथ तुम्हारा |

और तेरी आँखों से इस कदर पानी आ गया ||

Thursday, September 27, 2012

खूबी तो हम में ऐसी कुछ खास नहीं

सिर्फ कमियाँ ही नजर आई होंगी हमारी ।
वरना खूबी तो हम में ऐसी कुछ खास नहीं ।।

महफ़िल में हमारी ही ओर थी उन की निगाहें ।
मगर सूरत भी हमारी,  ऐसी कुछ खास नहीं ।।

फिर आके पास, वो धीरे से बोली ।
इतने खामोश क्यों हो ?

कैसे बता दें उन्हें कि,
महफ़िल मे आज वो भी है...जिन्हें अब हमारी हँसी रस नहीं ।।

Tuesday, September 25, 2012

इंतजार किसको है |

कल के आने का इंतजार किसको है |
अपनी कमियों से, यहाँ प्यार किसको है ||

हम तो सबसे सर झुका के मिला करते थे |
मगर यहाँ सर झुका के मिलाना रास किसको है ||

यहाँ तो सब लगे हैं, एक-दुजे की उधेड़ बुन में |
प्यार की बाते करने का, यहाँ वक्त किसको हैं ||

तूफान आते हैं सागर में, नदियों को क्या पता |
कितने जख्म खाए होंगे, ये उन चेहरों को क्या पता ||

फूलों को पहले काटा बना देते हैं यहाँ लोग |
और फिर कहते है उन काटों से की चुभना छोड़   दें ||

फिर भी हम उनकी बातो में अक्सर आ जाते हैं |
काटे होकर भी उन फूलो की तरह मुस्कुरा जाते है ||

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Monday, September 24, 2012

वो लड़की मुझे आज भी दीवानी लगाती है ||

ऐसा नहीं की कोई भी अपना नहीं मिला |
तन्हा रातो में पड़ सके जिसे वो चेहरा नहीं मिला ||

मिले बहुत यहाँ फूलों को भौंवरे मगर |
जो फूलों का दर्द पढ़ सके, वो भौवरा नहीं मिला ||

किसी पत्थर का पिघल जाना यहाँ मुमकिन न हो सका |
लाख कोशिशों के बाद भी वो पत्थर दिल न पिघल सका ||

हम उन रातो में अक्सर रो जाया करते थे |
जिन रातो में वो खुशियाँ मनाया करते थे ||

अब हम मोहब्बत के गीत गया करते हैं |
वो सुन-सुन के रो जाया करते हैं ||

अपनी अदाओं में वो अब भी इतना गुरुर रखती है |
हम जब भी उन्हें देखते है, वो नजरे झुका लिया करती हैं ||

उसकी ये अदा मुझे अब भी सुहानी लगाती हैं |
वो लड़की मुझे आज भी दीवानी लगाती है ||

Sunday, September 23, 2012

इस दुनियां की भीड़ में, तुम कही खो न जाओ

तेरे संग देखा हर ख्वाब, चाहा की सच हो जाये |
तू भी एक दिन, मेरी धड़कनों में बस जाये ||

तेरी हर ख़ुशी महफ़िल की रौनक बढ़ा दें | 
तू जो चाहे तो एक- एक गम से, महफ़िल को रुला दें ||

तेरी आंसमा में उड़ने की चाहत, सच होते अब देर न लगेगी |
बस तू अपने कदमों को, जमी से थोडा उठा लें ||

हमारे मिल कर बिछुड़ने की दास्ताँ में, फख्र करेगी ये दुनियां |
बस तू अपनी मंजिल को पाने के लिए, मुझे भी सीढ़ी बना लें ||

हम मिलेगें यार वही  खंडहरों में, जहाँ चुपके से मिला करते थे |
उन खंडरों को देख, बस तू एक बार मिलन का अहसास करा दें ||

इस  दुनियां की भीड़ में, तुम कही खो न जाओ ' ललित ! ' |
इसलिये ये सारी उलझने, अब उनके हाथो में थमा दें ||

Thursday, September 6, 2012

उनके हाथो में मेहंदी का रंग चड़ने वाला है...

उनके हाथो में मेहंदी का रंग चड़ने वाला है...
हमारे सीने में दिल का दर्द बढ़ने वाला है....
वो कह सकेगे जिसे अपना, उन्हें वो मिलने वाला है...
हम कहते थे जिसे अपना, हमसे वो बिछुड़ने वाला है...


Sunday, August 19, 2012

प्यार मिला, ख़ुशी मिली, संसार मिला...
सब कुछ मिला तुम्हें |
उससे पूछो क्या होती है जिंदगी...
जिसने ये सब कुछ खो दिया
सिर्फ पाने को तुम्हे... 

हर पल तेरी यादों में घिरा रहता हूँ |
हर चहरे में तुझे ही ढूढता रहता हूँ |
अब न मुझे सुकून हैं एक पल भी तेरे बिना ||
हर पल तुझसे मिलाने कि ख्वाईश मे लगा रहता हूँ ||
हजारो थे महफ़िल में, फिर तुमने हमारा ही नाम क्यों लिया ||
बड़े-बड़ो को छोड़ कर, तुमने हमें ही सलाम क्यों किया ||
हमने नजरे मिला ली, तो तुमने उसे गुस्ताकी बता दिया ||
तो बताओ फिर तुमने हमारे होठो से लगा वो जाम क्यों पिया ||
आज बहुत दिनों बाद, फिर उस चाँद का इंतजार होगा |
चाँद दिखाते ही, ईद में खोया सारा संसार होगा ||
कैसे मना लू, मैं ईद उसके बिन |
मेरा चाँद तो अब भी मुझसे खफा होगा || 

Monday, July 30, 2012

धरती हमारी माता हैं, इसको तुम प्रणाम करो ||


धरती हमारी माता हैं, इसको तुम प्रणाम करो |
इस जननी का उस जननी से, सदियों का ये नाता हैं |
जन्म दिया हमको उस माँ ने, इस की गोद में खेले है |
चाहत फिर भी कम न हुई इसकी,
हमारे वजन को सदा कंधो पर धोया है || 
धरती हमारी माता हैं, इसको तुम प्रणाम करो ||

जो माँगा सब कुछ दिया धरती ने ,
जो चाहा सब कुछ लिया इस धरती से |
अब हम क्यों करते है इसको मैला,
सब कुछ समर्पित कर दिया जिसने अपने लाल पर |
हम उसी का विनाश कर रहे हैं,
जिसने हमें बोलने के काबिल बनाया,
जिसने हमें चलाना सिखाया |
और भूल बैठे है कि उस का विनाश ही हमारा अन्त होगा |
कोई भी दुनिया उसे स्वीकार नहीं करेगी, 
जिसने अपनी माँ को ठुकरा दिया हो ||

अभी भी कुछ ख़त्म नहीं हुआ |
ये सब जान लो ,
इस धरती माँ को पहचा लो |
मत करो इस का विनाश,
क्यों कि इसी मे बसा है,
हमारा पूरा संसार |
हमारा कल, हमारा परसों...
आने वाले वो दिन जिन्हें जियोगे आप वर्षो वर्षो...
इस लिए कहता हूँ..... 
धरती हमारी माता हैं, इसको तुम प्रणाम करो |  
हो जग जिससे सुन्दर, ऐसा भी कुछ काम करो |
धरती हमारी माता हैं, इसको तुम प्रणाम करो ||



ललित बिष्ट 

Tuesday, July 24, 2012

मैंने इस शहरों में, शादियों में बड़ा अजूबा देखा हैं |

मैंने इस शहरों में, शादियों में बड़ा अजूबा देखा हैं |
बड़े बड़े अफीसरों को मैंने,
भिखारियों की तरह पलेट कटोरों में देखा है |
यहाँ शादियों में बड़ी रौनक लगी मिलती है,
काउंटर में खाली लिफाफे जमा करने वालों की भीड़ लगी रहती है |
हर एक आदमी, खिलने वाले की बुराई मे लगा रहता है,
एक-एक की थाली मे, दस का खाना लगा रहता है |
जहाँ देखो, हर तरफ लोग ऐसे नजर आते है,
संसद में जैसे भेड़िये घूस जाते है |
लोग शादी मे बैंड खूब बजवाते है,
और जाते जाते बैंड वाले की ही बुराई कर जाते है |
कैसे अमीरों ने शादियों का ढंग बदल रखा है,
 गरीब की नाक मे दम कर रखा है |
शादियाँ यहाँ व्यापार बन गयी है,
दुलहन की मांग का सिंदूर, पैसे मे बदल गयी है |
चलो अच्छा है, अभी सिर्फ ढंग बदला है,
कुछ समय बाद इंसान का रंग बदल जायेगा |
फिर एक दिन इंसान, खुद इंसान बनाने को तरस जायेगा ||

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Friday, July 20, 2012

अब छोड़ दिया लेना हमने उनका सहारा..


अब छोड़ दिया लेना हमने उनका सहारा..
जो हर रोज हमें बीच राह मे छोड़ देते है..
हम अपनी चाहत मे उन्हें घर तक ले चलते है..
और वो दरवाजे से ही हमें वापस मोड़ देते है..

Wednesday, July 11, 2012

समंदर की जो लहरों को, मचलना खूब आता हैं |


१>समंदर की जो लहरों को,

                                मचलना खूब आता हैं |

तो इन पत्तों को भी पतझड़ में,
                                         गिरना खूब आता हैं ||

इन्हीं की चाल पर चलते ,
                                  दीवानों को भी समझा दों |

कि बिन पंखों के परिंदों को ,
                                    भी इस धरती पर चलना हैं ||

२>  ये दीवाने हैं इनको
                              रोक ना पाओगें उड़ने से |

ये परवाने हैं इनको
                          रोक ना पाओगें जलने से ||

इन्हें तो यूँ ही उड़ने दो
                              सभल जायेंगे गिर- गिर के |

वरना खुद ही मिट जायेंगे
                                  ये दुनिया के जलने से ||

दीवाने पान का भी अपना ,
                                  अलग अहसास होता हैं |

उम्मीदों को बदलने का ,
                                     अलग अंदाज होता हैं ||

मोहब्बत हो ही जाती हैं ,
                                 जब आँखें चार होती हैं |

शरारत हो ही जाती हैं ,
                              जब आँखें वार करती हैं ||

तेरी यादों को जीने का, सहारा मै समझता हूँ |


तेरी यादों को जीने का, सहारा मै समझता हूँ |

तुम्हे अपनी निगाहों का, नजारा मै समझता हूँ ||

कि जिस दिन तुम नहीं आते, मेरा दिल रूठ जाता है |

मनाऊं दिल को अब कैसे, समझ मेरे न आता है ||

जो तुमको भूल जाने कि, बहुत कोशिश जो कि हमने |

मगर हर बार वो चेहरा, मेरी आँखों में रहता है ||

जो आँखे बन्द भी कर लूँ, तो फिर सपनों मे आता है ||

तो कैसे भूल जाऊ उसको, अब इतनी सरलता से |

जिसे पाने मे हमने खो दिए, वर्षों जवानी के ||

अब तो यूँ ही बस जीते है, कि कट जाये ये जीवन |

फिर अगले जन्म मे हमको मिले वो दिन जवानी के ||..||

Tuesday, July 10, 2012

अब उनकी चाहत इस दिल से मिटा देंगे |

अब उनकी चाहत इस दिल से मिटा देंगे |
महफ़िल मे अब बिन उनके भी मुस्कुरा लेंगे ||
हमारी चाहत को, वो कही मजबूरी न समझ लें||
इस लिए अब रों- रों के इस दिल को मना लेंगे ||

शायद उन्हें कभी प्यार ही न था हमसे |
हम ही उनके सपने अपनी आँखों मे सजा रहे थे |
अपनी हैसियत भूल चुके थे हम उनके प्यार में |

अब उस रब से उनके खुश रहने की दुआ करते है |
हर रोज उनकी ख़ुशी के लिए, उस रब के सामने झुका करते हैं ||

Monday, July 9, 2012

जीवन का आधार है प्यार फिर कहते हो प्यार क्यों | |


जीवन का आधार है प्यार फिर कहते हो प्यार क्यों |
रूप का श्रंगार है प्यार फिर कहते हो प्यार क्यों ||
हमारी जिंदगी को बदल दिया है जिसने वो है प्यार |
फिर कहते हो प्यार क्यों.. फिर कहते हो प्यार क्यों ||

Sunday, July 8, 2012

यूँ तो आते है हमें खुदा को भी मनाने के बहाने हजार |

यूँ तो आते है हमें खुदा को भी मनाने के बहाने हजार |
मगर न जाने उन से बात करते वक़्त क्यों कम पड़ जाते है अल्फाज | |
सोचते है कि बता दे उन्हें अपनी दिल की बात |
मगर डरते है कि कही उनका दिल न दुःख जाये ||

Monday, July 2, 2012

कि जिन्दगी पर एक किताब लिखूंगा |


कि जिन्दगी  पर  एक  किताब  लिखूंगा |
और  उस पर  सारा  हिसाब  लिखूंगा ||
जो  बीत  गयी  है  वो बात  क्या  लिखू |
जो  गुजरेंगे वो हालत लिखूंगा ||

मोहब्बात किताबो मे पड़ने से नहीं होती |


मोहब्बात किताबो मे पड़ने से नहीं होती |
चाहने वाली चीज नयी  और पुरानी नहीं होती ||
और चाहत हो किसी को सच्चे दिल से पाने की |
तो फिर उसे खुदा की भी जरुरत नहीं होती ||

Thursday, June 28, 2012

ग़ालिब (मैं) तेरी हर अदा में यूँ मरता रहा |


ग़ालिब (मैं) तेरी हर अदा में यूँ मरता रहा |
तू उम्र भर हुसन बदलती रही |
मैं जिंदगी भर यूँ ही तड़पता रहा ||

Wednesday, June 27, 2012

तुमसे मिलकर जिंदगी के मायने बदल गए |


तुमसे मिलकर जिंदगी के मायने बदल गए |
चेहरा वही था मगर आईने बदल गए ||
यूँ रातों मे जागना , दिन मे सोना |
तुम से मिलकर जिंदगी जीने के बहाने बदल गए ||  

Saturday, June 23, 2012

लगता है कि हम गलत राह चुन रहे है |


लगता है कि हम गलत राह चुन रहे है |
आसमा मे उड़ने का सपना बुन रहे है ||
हमें मालूम है कि सितारे आसमां मे ही अच्छे लगते है |
फिर भी सितारों को जमी पे लाने का हौसला कर रहे हैं ||

Thursday, June 21, 2012


मैंने हर रूह को तडपते  देखा है |
बड़े बड़े शेरो को यहाँ सिर्फ गरजते देखा है |
और जो लोग कहते थे डर के आगे जीत है |
उन्हें भी डर - डर के मरते हुवे देखा है ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट

Sunday, June 17, 2012

क्यों आज ये मन मचलने को बेक़रार है,


क्यों आज ये मन मचलने को बेक़रार है,
क्यों आज ये दिल बहकाने को बेक़रार है |
मना ले आज तू, इस मन को मचलने से,
रोक ले आज तू, इस दिल को बहकाने से |
कही ऐसा न हो बिन बादल बरसात हो जाये,
महबूबा हो संग  और बात न हो पाए |
और कल तलक जो एक ही सिक्के के दो पहलू थे,
वही आज एक दूजे से मिलाने को घबराए  ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट

Wednesday, June 13, 2012

ख़्वाबों में मेरे अक्सर, तुम आ जाती हो |

ख़्वाबों में मेरे अक्सर, तुम आ जाती हो |
हल्की सी आहट से, सारी रात जगाती हो |
तुम्हारी मुस्कुराहट, तुम्हारा दर्द बताती है |
ना हमको सोने देती है, ना तुम्हें नीद आ पाती है ||

Friday, June 8, 2012


तेरे जाने के बाद मै हर दिन यही सोचता रहा,
कि, क्यों तेरा नजरिया इतनी जल्दी बदल गया ||
जिसे कल तक हमसे मिले बिना चैन न आता था,
आज वो ही शक्श हमें देख कर रास्ता बदल गया ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट

इन आखों मे मुस्कुराहटो का खजाना ढूढ़ता हूँ,
तुम्हारे शहर में मैखाना ढूढ़ता हूँ |
कुछ तो मिले होश खोने के लिए,
आज बेहोशी का बहाना ढूढ़ता हूँ ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट 

Wednesday, June 6, 2012

एक बार फिर से खोना चाहता हूँ,
तेरी बाहों मे सोना चाहता हूँ ||
नैनो से नैनो का मिलन तो हो चुका,
एक बार तुम्हारे आगोश मे खोना चाहता हूँ ||

Monday, June 4, 2012


लगता नहीं, कि अब इस दुनिया में रह पाउँगा |
इन बेरहम लोगो के साथ अब और न जी पाउँगा |
एक -एक पैसे कि कीमत सिखा दी है उन लोगो ने हमें |
जीने का ढंग भी आता नहीं जिन्हें ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट

Thursday, May 31, 2012


लोग कहते हैं, कि तुम कोई उसूल क्यों नहीं बना लेते |
मैंने उसूलो से इन्सान को पीछे हटते देखा है |
और उसूलो पर कायम इन्सान को,
दर-बदर भटकते देखा है ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट

Monday, May 28, 2012

ये कैसा फासला हो गया गरीबी और अमीरी में,
मुझे अब तक समझ ना आया |
आज राह में तड़प रहा था एक गरीब,
मौत और जिन्दगी के बीच |
और एक दिन बचाया था किसी गरीब ने मुझे,
आज मैं ही उस गरीब के काम ना आ पाया ||


मैंने इस शहरों में, शादियों में बड़ा अजूबा देखा हैं |

मैंने इस शहरों में, शादियों में बड़ा अजूबा देखा हैं |
बड़े बड़े अफीसरों को मैंने,
भिखारियों की तरह पलेट कटोरों में देखा है |
यहाँ शादियों में बड़ी रौनक लगी मिलती है,
काउंटर में खाली लिफाफे जमा करने वालों की भीड़ लगी रहती है |
हर एक आदमी, खिलने वाले की बुराई मे लगा रहता है,
एक-एक की थाली मे, दस का खाना लगा रहता है |
जहाँ देखो, हर तरफ लोग ऐसे नजर आते है,
संसद में जैसे भेड़िये घूस जाते है |
लोग शादी मे बैंड खूब बजवाते है,
और जाते जाते बैंड वाले की ही बुराई कर जाते है |
कैसे अमीरों ने शादियों का ढंग बदल रखा है,
 गरीब की नाक मे दम कर रखा है |
शादियाँ यहाँ व्यापार बन गयी है,
दुलहन की मांग का सिंदूर, पैसे मे बदल गयी है |
चलो अच्छा है, अभी सिर्फ ढंग बदला है,
कुछ समय बाद इंसान का रंग बदल जायेगा |
फिर एक दिन इंसान, खुद इंसान बनाने को तरस जायेगा ||

Thursday, May 24, 2012

उन्हें पता नहीं हमे शौक क्या क्या है||

उन्हें पता नहीं हमे शौक क्या क्या है,
उन्हें पता नहीं हमे रोग क्या क्या है,
डूबने के लिए छोड़ दिया सागर मे हमें,
उन्हें पता नहीं,
कि इस सागर मे ही कभी हमने उन्हें डूबने से बचाया था ||

Thursday, May 17, 2012

तुम जो मिल जाओ सफ़र मे,
तो सफ़र आसां हो जाये ||
राहा के काटे भी फूल बनके मुस्कुराएँ  ||
और यूँ तो साफ़ मौसम मे नदियाँ कोई भी पार कर लेगा ||
तुम जो हो साथ तो फिर, हम तूफाँ से भी लड़ा गए ||

प्रेम अभिलाष:: ललित बिष्ट

Monday, April 2, 2012

"आमंत्रण है, निमंत्रण है, प्यार भरा गुंजन है,



"आमंत्रण है, निमंत्रण है, प्यार भरा गुंजन है,
 बहुत दिनों से कापी बंद कविताओं के लिए कुछ नए प्रकाशन हैं ||"

 facebook बंधुओं को 'hindi kavita, मन की भाषा' की ओर से हार्दिक अभिवादन ||
 हमें अति प्रसन्नता हो रही है, आप को यह बताते हुए कि हमारे समूह ने आपकी
 भावनाओं को नया विश्व देने एवं उन्हें जन सामान्य तक पहुँचाने के उद्देश्य से,
 एक सामुहिक संकलन निकालने का निश्चय किया है || आपका सहयोग अपेक्षित हैं एवम
आपकी कवितायेँ सादर आमंत्रित हैं ||

 १ -आप निम्न ई - मेल पते पर अपनी रचनाएं भेजे -- hindi.kavitas@gmail.com , आप रचनाएं अटैच न करें सीधे भेजें ||
 २ -संकलन एक सामूहिक प्रोजेक्ट के रूप मे निकाला जाएगा,  इसलिए इस पर जो भी व्यय होगा संकलन के लिए चुने गए रचनाकारों को ही मिलकर वहन करना होगा || व्यय होने वाली धनराशि किस प्रकार एकत्र की जानी है इसके बारे मे रचनाओ के चयन के बाद निर्णय लिया जाएगा व अलग से सूचना जारी की जाएगी. ई-मेल करने की अंतिम तिथि 15 अप्रैल हैं ||

Saturday, March 31, 2012

मिलेगा न हमसा कोई दूसरा

मिलेगा न हमसा कोई दूसरा, इस दुनिया तुम्हे |
ढूँढ लेना अमावास की काली रात मे, दीपक ले कर ||
ढूँढ कर थक जाओगी, तो आवाज़ लगा देना हमे |
मौत के मुह से भी वापस आ जायेगें, हम मिलने को तुम्हे ||

मेरी चाहत नहीं

मेरी चाहत नहीं,
                         इस आसमां मे उड़ने की ||
मेरी चाहत नहीं,
                         इस दुनिया से लड़ने की ||
बस यही ख्वाहिश है कि,
                                      किसी नदी का किनारा बन जाऊ ,
डूबते हुए का सहारा बन जाऊ ,
                                             और उड़ते हुए के लिए नजारा बन जाऊ ||

यूँ दर बदर भटकता रहा, नहीं मिला किसी का सहारा |

यूँ दर बदर भटकता रहा, नहीं मिला किसी का सहारा |
बहती नदियाँ मेँे, नहीं मिला कोई किनारा ||
अब क्योँ रोये उन के लिए गालिफ |
चलती राहों मे छोड दिया, जिन्होंने हाथ हमारा ||
ये नदियाँ, ये हवाएं, ये वक्त यूँ ही थम जायेगा |
चाँद की रोशनी से भी, ये सूरज पिघल जायेगा ||

जिस दिन ये दुनिया लेगी हमारी मोहब्बत का इन्तिहाम |
उस दिन यें आसमा भी इस धरती से मिल जाएगा ||

By : ललित बिष्ट

Wednesday, March 21, 2012

ये मधुमस्ता हवाएं ,ये रेशम सी घटायें ||

ये मधुमस्ता हवाएं ,
                          ये रेशम सी घटायें |

कर रही हैं घायल ,
                         मेरे मान को हायें ||

ना जाने आज ये मौसम
                               क्यों रूठा हैं हमसे ||

ये फूल, ये पंछी ,
                       क्यों खफा हैं हमसे |

न जाने आज फिर ,
                         क्यों याद आ रहा हैं वो चेहरा ||

जिसे भुलाने में,
                      वषों गुजर गए यूँ ही |

लगता हैं आज वो ,
                         फिर किशी मुस्किल में हैं ||

ए खुदा अब यही ,
                        गुजारिश है तुमसे |

कि उसके सारे गम,
                           मेरे दामन में भर दें |

और मेरी सारी खुशी,
                             उनके जीवन को समर्पित कर दें ||

समंदर की जो लहरों को मचलना खूब आता हैं |


१>समंदर की जो लहरों को,
                                मचलना खूब आता हैं |

तो इन पत्तों को भी पतझड़ में,
                                         गिरना खूब आता हैं ||

इन्हीं की चाल पर चलते ,
                                  दीवानों को भी समझा दों |

कि बिन पंखों के परिंदों को ,
                                    भी इस धरती पर चलना हैं ||

२>  ये दीवाने हैं इनको
                              रोक ना पाओगें उड़ने से |

ये परवाने हैं इनको
                          रोक ना पाओगें जलने से ||

इन्हें तो यूँ ही उड़ने दो
                              सभल जायेंगे गिर- गिर के |

वरना खुद ही मिट जायेंगे
                                  ये दुनिया के जलने से ||

दीवाने पान का भी अपना ,
                                  अलग अहसास होता हैं |

उम्मीदों को बदलने का ,
                                     अलग अंदाज होता हैं ||

मोहब्बत हो ही जाती हैं ,
                                 जब आँखें चार होती हैं |

शरारत हो ही जाती हैं ,
                              जब आँखें वार करती हैं ||

Tuesday, March 20, 2012

कि देवताओं के देश मैं अशुरों का राज हुवा


१>कि देवताओं के देश मैं अशुरों का राज हुवा,
                                                       जहाँ गंगा लोगों के ही पापों को धोती रही,

वहां पर अब मदिराओं का अधिकार हुवा ,
                                                       खो दिए हाँ लोगों ने भी अपने ही संस्कार ,

और पश्चिम की सभ्यता को बना दिया हैं आधार ,
                                                       बची खुची राजनीति ने किया हैं यूँ विनाश ,

कैसे करें हम प्रगति, कैसे करे हम विकास ,
                                                       देवताओं के देश में अशुरों का हुवा राज ||

२> भष्टाचारी नेता अब बना रहें है सरकार ,
                                                       तो कैसे करे हम उम्मीदें इनसे अच्छें काम की ,

ये तो वो लुटेरे हैं जो लूट रहे माँ को ही ,
                                                       और गरीबों के पैसो से ये करते हैं राज भी ,
 
देश का ही पैसा अब जा रहा विदेशों में ,
                                                       काला धन जमा हवा है विदेशों के बैकों में ,

और भारत को गिना गया गरीबों के देशों में ,

तो कैसे करे हम प्रगति, कैसे करे हम विकास ,
                                                          देवताओं के देश में अशुरों का हवा राज ||

३> भष्टाचारी ही बड़े हैं देश के हर कोने में ,
                                                          देश के सितारे अब जा रहे विदेशों में ,

भष्टाचारीयों से अब देश को बचाना हैं ,
                                                          भारत को फिर से यूँ देवभूमी बनाना हैं ||
 

                                                                                          प्रेम अभिलाषा : ललित बिष्ट 

जो खुद को ही भूल गया हैं ,


जो खुद को ही भूल गया हैं ,
                                         इस दुनिया की उलझन में ||
जओ शीशे सा टूट गया हैं ,
                                         इस दुनिया की हलचल में ||
प्यार ने उसको जोड़ दिया हैं ,
                                         इस दुनिया से लड़ने को ||
खोयी सांसे वापस कर दी ,
                                         प्यार मोहब्बत करने को ||


जिसने भी ये मर्ज सहा हैं ,
                                        उसको पता हैं इस का मजा ||
जो लहरों के पास गया हैं ,
                                        उस को पता हैं सागर का नशा ||
प्यार में भी एक चुभन सी होती ,
                                        रहती हैं दिन रात मगर ||
जो इससे भी दूर रहा हैं ,
                                        वो क्या जाने इसका मजा ||



जो बूंदों से जगा को भीगों दें ,
                                          उस का नाम मोहब्बत हैं ||
जो सागर से मोती ला दें ,
                                          उसका नाम मोहब्बत हैं ||
अपने घर में चमक रहा हाँ ,
                                          हर एक तारा यूँ ही मगर ,
जो धरती को भी चमका दें ,
                                          उस का नाम मोहब्बत हैं ||

                                                                                           प्रेम अभिलाषा : ललित बिष्ट 

Tuesday, March 6, 2012



यूँ खिलने लगे है रंग फूलो के संग,
                                            चारों तरफ बिखरे है अबीर गुलाल के ही रंग ||
फाल्गुन के इस माह मे रंगीन चेहरों के संग ,
                                            मुबारक हो होली आपको पुरे परिवार के संग ||    

                                                               ||प्रेम अभिलाषा : ललित बिष्ट ||


Monday, March 5, 2012


जीवन परिचय
नाम - ललित मोहन बिष्ट
पिता -श्री आनंद सिंह बिष्ट
माता -श्रीमती गंगा देवी बिष्ट
जन्म -26 जनवरी 1988 , अल्मोड़ा ( उत्तराखंड )
शिक्षा - इन्टरमीडिएट (उत्तराखंड बोर्ड ) 2007 मे,
स्नातक (र. व. डी. विश्वविद्यालय राजस्थान से B .Tech ) pursuing  (2009 से 2012 तक )
साहित्यिक गतिविधियां - एक संकलन मे कविताएं प्रकाशनाधीन
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                        ||.. कविता ..||      
                           
तेरी यादों को जीने का,
                                सहारा मै समझता हूँ |
तुम्हे अपनी निगाहों का,
                                नजारा मै समझता हूँ ||
कि जिस दिन तुम नहीं आते,
                               मेरा दिल रूठ जाता है |
मनाऊं दिल को अब कैसे,
                               समझ मेरे ना आता है ||
||...............................*..............................||
जो तुमको भूल जाने कि,
                               बहुत कोशिश जो कि हमने |
मगर हर बार वो चेहरा,
                              मेरी आँखों में रहता है ||
जो आँखे बन्द भी कर लूँ,
                              तो फिर सपनों मे आता है ||
||................................*.................................||
तो कैसे भूल जाऊ उसको,
                             अब इतनी सरलता से |
जिसे पाने मे हमने खो दिए,
                            वर्षों जवानी के ||
अब तो यूँ ही बस जीते है,
                            कि कट जाये ये जीवन |
फिर अगले जन्म मे हमको मिले
                           वो दिन जवानी के ||..||
||..........................*.............................||


हर एक पल पल का हमको हिसाब देना पड़ा,

                                                        अपने ही सवालों का जवाब देना पड़ा ||
यू जो गये हो तुम हमें छोड़ के,

                                            दिलो और धडकनों के बीच तकरार होने लगा ||..||

                                                                    || प्रेम अभिलाषा : ललित बिष्ट ||

हर एक पल पल का हमको हिसाब देना पड़ा,

                                                       अपने ही सवालों का जवाब देना पड़ा ||
यू जो गये हो तुम हमें छोड़ के,

                                             दिलो और धडकनों के बीच तकरार होने लगा ||

                                                                || प्रेम अभिलाषा : ललित बिष्ट ||

Sunday, March 4, 2012

जमी पर चलना भी मुश्किल सा लगे जिन्हें ,
                                                      
                                                             उन्होंने भी आसमा में उड़ने के सपने दिलों मे पाले हैं ||


 मगर बड़ी ही जालिम हैं ये दुनिया
                                                     
                                                          जिसने छोटी आखों में पलते सपने भी कुचल डाले है ||


                                                              
                                                                                      ||  प्रेम अभिलाषा : ललित बिष्ट ||

Friday, March 2, 2012

तेरी यादों को जीने का, सहारा मै समझता हूँ ||


तेरी यादों को जीने का, 
                                सहारा मै समझता हूँ |
तुम्हे अपनी निगाहों का,
                                नजारा मै समझता हूँ ||
कि जिस दिन तुम नहीं आते,
                               मेरा दिल रूठ जाता है |
मनाऊं दिल को अब कैसे,
                               समझ मेरे ना आता है ||
||...............................*..............................||
जो तुमको भूल जाने कि,
                               बहुत कोशिश जो कि हमने |
मगर हर बार वो चेहरा,
                              मेरी आँखों में रहता है ||
जो आँखे बन्द भी कर लूँ,
                              तो फिर सपनों मे आता है ||
||................................*.................................||
तो कैसे भूल जाऊ उसको,
                             अब इतनी सरलता से |
जिसे पाने मे हमने खो दिए,
                            वर्षों जवानी के ||
अब तो यूँ ही बस जीते है,
                            कि कट जाये ये जीवन |
फिर अगले जन्म मे हमको मिले
                           वो दिन जवानी के ||..||
||..........................*.............................||


                                                                        ||**प्रेम अभिलाषा :ललित बिष्ट **||