Thursday, May 17, 2012

तुम जो मिल जाओ सफ़र मे,
तो सफ़र आसां हो जाये ||
राहा के काटे भी फूल बनके मुस्कुराएँ  ||
और यूँ तो साफ़ मौसम मे नदियाँ कोई भी पार कर लेगा ||
तुम जो हो साथ तो फिर, हम तूफाँ से भी लड़ा गए ||

प्रेम अभिलाष:: ललित बिष्ट