Sunday, September 23, 2012

इस दुनियां की भीड़ में, तुम कही खो न जाओ

तेरे संग देखा हर ख्वाब, चाहा की सच हो जाये |
तू भी एक दिन, मेरी धड़कनों में बस जाये ||

तेरी हर ख़ुशी महफ़िल की रौनक बढ़ा दें | 
तू जो चाहे तो एक- एक गम से, महफ़िल को रुला दें ||

तेरी आंसमा में उड़ने की चाहत, सच होते अब देर न लगेगी |
बस तू अपने कदमों को, जमी से थोडा उठा लें ||

हमारे मिल कर बिछुड़ने की दास्ताँ में, फख्र करेगी ये दुनियां |
बस तू अपनी मंजिल को पाने के लिए, मुझे भी सीढ़ी बना लें ||

हम मिलेगें यार वही  खंडहरों में, जहाँ चुपके से मिला करते थे |
उन खंडरों को देख, बस तू एक बार मिलन का अहसास करा दें ||

इस  दुनियां की भीड़ में, तुम कही खो न जाओ ' ललित ! ' |
इसलिये ये सारी उलझने, अब उनके हाथो में थमा दें ||