१>समंदर की जो लहरों को,
मचलना खूब आता हैं |
तो इन पत्तों को भी पतझड़ में,
गिरना खूब आता हैं ||
इन्हीं की चाल पर चलते ,
दीवानों को भी समझा दों |
कि बिन पंखों के परिंदों को ,
भी इस धरती पर चलना हैं ||
२> ये दीवाने हैं इनको
रोक ना पाओगें उड़ने से |
ये परवाने हैं इनको
रोक ना पाओगें जलने से ||
इन्हें तो यूँ ही उड़ने दो
सभल जायेंगे गिर- गिर के |
वरना खुद ही मिट जायेंगे
ये दुनिया के जलने से ||
दीवाने पान का भी अपना ,
अलग अहसास होता हैं |
उम्मीदों को बदलने का ,
अलग अंदाज होता हैं ||
मोहब्बत हो ही जाती हैं ,
जब आँखें चार होती हैं |
शरारत हो ही जाती हैं ,
जब आँखें वार करती हैं ||
तो इन पत्तों को भी पतझड़ में,
गिरना खूब आता हैं ||
इन्हीं की चाल पर चलते ,
दीवानों को भी समझा दों |
कि बिन पंखों के परिंदों को ,
भी इस धरती पर चलना हैं ||
२> ये दीवाने हैं इनको
रोक ना पाओगें उड़ने से |
ये परवाने हैं इनको
रोक ना पाओगें जलने से ||
इन्हें तो यूँ ही उड़ने दो
सभल जायेंगे गिर- गिर के |
वरना खुद ही मिट जायेंगे
ये दुनिया के जलने से ||
दीवाने पान का भी अपना ,
अलग अहसास होता हैं |
उम्मीदों को बदलने का ,
अलग अंदाज होता हैं ||
मोहब्बत हो ही जाती हैं ,
जब आँखें चार होती हैं |
शरारत हो ही जाती हैं ,
जब आँखें वार करती हैं ||