जो खुद को ही भूल गया हैं ,
इस दुनिया की उलझन में ||
जओ शीशे सा टूट गया हैं ,
इस दुनिया की हलचल में ||
प्यार ने उसको जोड़ दिया हैं ,
इस दुनिया से लड़ने को ||
खोयी सांसे वापस कर दी ,
प्यार मोहब्बत करने को ||
जिसने भी ये मर्ज सहा हैं ,
उसको पता हैं इस का मजा ||
जो लहरों के पास गया हैं ,
उस को पता हैं सागर का नशा ||
प्यार में भी एक चुभन सी होती ,
रहती हैं दिन रात मगर ||
जो इससे भी दूर रहा हैं ,
वो क्या जाने इसका मजा ||
जो बूंदों से जगा को भीगों दें ,
उस का नाम मोहब्बत हैं ||
जो सागर से मोती ला दें ,
उसका नाम मोहब्बत हैं ||
अपने घर में चमक रहा हाँ ,
हर एक तारा यूँ ही मगर ,
जो धरती को भी चमका दें ,
उस का नाम मोहब्बत हैं ||
प्रेम अभिलाषा : ललित बिष्ट