तेरी यादों को जीने का,
सहारा मै समझता हूँ |तुम्हे अपनी निगाहों का,
नजारा मै समझता हूँ ||
कि जिस दिन तुम नहीं आते,
मेरा दिल रूठ जाता है |
मनाऊं दिल को अब कैसे,
समझ मेरे ना आता है ||
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जो तुमको भूल जाने कि,
बहुत कोशिश जो कि हमने |
मगर हर बार वो चेहरा,
मेरी आँखों में रहता है ||
जो आँखे बन्द भी कर लूँ,
तो फिर सपनों मे आता है ||
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तो कैसे भूल जाऊ उसको,
अब इतनी सरलता से |
जिसे पाने मे हमने खो दिए,
वर्षों जवानी के ||
अब तो यूँ ही बस जीते है,
कि कट जाये ये जीवन |
फिर अगले जन्म मे हमको मिले
वो दिन जवानी के ||..||
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||**प्रेम अभिलाषा :ललित बिष्ट **||