Sunday, June 17, 2012

क्यों आज ये मन मचलने को बेक़रार है,


क्यों आज ये मन मचलने को बेक़रार है,
क्यों आज ये दिल बहकाने को बेक़रार है |
मना ले आज तू, इस मन को मचलने से,
रोक ले आज तू, इस दिल को बहकाने से |
कही ऐसा न हो बिन बादल बरसात हो जाये,
महबूबा हो संग  और बात न हो पाए |
और कल तलक जो एक ही सिक्के के दो पहलू थे,
वही आज एक दूजे से मिलाने को घबराए  ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट